Saturday, July 12, 2008

अगर तलवार निर्दोष हैं तो जेलों में बंद लाखों अभियुक्त भी निर्दोष हो सकते हैं

आरूषी प्रकरण में आरूषी के पिता राजेश तलवार को बेकसूर बता कर सीबीआई ने कुछ और साबित भले ही न किया हो ये जरूर साबित कर दिया कि हमारी पुलिस की विवेचना का स्तर क्या है। बिना किसी सबूत के बेटी की हत्या में पिता को हत्यारा घोषित कर, उसको आरोपी बनाकर नोयडा पुलिस ने पुलिसिया कार्यप्रणाली पर पहले से लगा हुआ प्रश्नचिन्ह और बड़ा कर दिया है।

भारतीय पुलिस की विवेचना की विशेषता ही यह है कि उपलब्ध सबूतों के आधार पर अपराधी नहीं खोजती बल्कि पहले अपराधी का निर्धारण करती है फिर उसके खिलाफ सबूत ढूंढती है। मिल जायें तो ठीक नहीं तो सबूत पैदा किये जाते हैं आखिर अदालत में कुछ तो दिखाना ही होता है। हम कह सकते हैं कि किसी भी अपराध में अपराधी खोज कर उसके गले के नाप का फंदा तैयार नहीं किया जाता बल्कि पहले फंदा तैयार किया जाता है फिर उसके साइज का अपराधी ढूंढा जाता है जिसके गले में फिट बैठ जाये वही अपराधी।

सवाल ये उठता है कि सारे साधन होने के बाद भी आखिर पुलिस विभाग के जांच अधिकारी क्यों लापरवाही बरतते हैं ? क्यों उन्हें ये नहीं बताया जाता कि भारतीय न्याय प्रणाली का मूल सिद्धांत ये है कि भले ही सौ अपराधी बच जाये परंतु किसी निरपराध को सजा नहीं होनी चाहिये। परंतु पुलिसिया कार्यप्रणाली की बदौलत होता इसका उलटा है, अपराधी तो बचे ही रहते हैं सजा अक्सर निर्दोषों को ही होती है। पुलिस कर्मियों का इससे कोई लेना देना नहीं होता कि अपनी लापरवाही के चलते वे जिस एक को आरोपी बनाकर कोर्ट में पेश कर रहे हैं सजा उससे जुड़े कई लोगों को भुगतनी पड़ती है।

क्या अब वो समय नहीं आ गया है जब मृत्युदंड और आजीवन कारावास जैसे दण्डों वाले अपराधों की जांच पुलिस विभाग से छीन कर किसी सीबीआई जैसी जांच एजेंसी से कराई जाना चाहिये। और पुलिस विभाग को छोटे अपराधों या शांति व्यवस्था बनाये रखने के साथ सिर्फ यातायात व्यवस्था बनाये रखने तक सीमित कर देना चाहिये।

अगर देखा जाये तो सीबीआई से कहीं अधिक अनुभव पुलिसकर्मियों के पास होता है, सीबीआई को तो कभी कभी इन अपराधों की विवेचना करनी पड़ती है जबकि पुलिस का वास्ता रोज ही ऐसे अपराधों से होता है परंतु फिर भी क्यों हमेशा ही पुलिस से चूक होती है। जैसे तैसे किसी प्रकरण में पुलिस वास्तविक अपराधी को पकड़ भी लेती है तो उसके खिलाफ ऐसे सबूत एकत्रित नहीं किये जाते जो कोर्ट में उस अपराध को निर्विवाद साबित कर सकें।

राजेश तलवार तकदीर के धनी थे जो मीडिया की मेहरबानी से सीबीआई जांच के बाद बच गये, कितने अभियुक्त हैं जिन्हें तलवार जैसी तकदीर मिली होती है। अगर सीबीआई जांच नहीं होती तो राजेश तलवार को एक ऐसे अपराध की सजा मिलती जो उन्होंने कभी किया ही नहीं था साथ ही बेटी के कत्ल का कलंक लेकर कैसे कोई पिता अपनी बाकी जिंदगी बिता सकता था। और इस लापरवाही के लिये जिम्मेदार पुलिस के लिये कोई सजा हमारे कानून में नहीं बनाई गई।