Monday, March 31, 2008

ये हमारी पुलिस है

एक आदमी अचानक गुम हो जाता है परिवार वाले उसकी सूचना तुरंत थाने को देते है। थाने में रिपोर्ट दर्ज होती है कार्यवाही होती है लेकिन उस आदमी का पता नहीं चलता। ये कोई नई बात नहीं है कम से कम हमारे भारत की पुलिस के लिए तो बिल्कुल भी नहीं है। लेकिन अगर गुम होने के दूसरेदिन ही उस आदमी की दुर्घटना में मौत हो जाय पुलिस को पता भी लग जाय की मरने वाला एक दिन पहले गुम हुआ आदमी है फ़िर भी उसकी सूचना सवा साल बाद उसके परिवार को दी जाय तो हमे समझ लेना चाहिए की अब हमारी पुलिस ने वास्तव में तरक्की कर ली है। एक रास्ट्रीय समाचार पत्र में जब ये पढ़ा की ग्वालियर की पुलिस ने ऐसा ही कारनामा अभी हाल ही में अंजाम दिया है और वह भी मात्र दो थानों की सीमाओं के विवाद के चलते तो बहुत दुःख हुआ। क्या वास्तव में इंसानियत नाम की चीज़ बिल्कुल खत्म हो गई है। क्या इन पुलिस वालों के दिल में कोई ज़ज्बात नहीं होते। ये कमाल तो तब हुआ जब कि मृतक का भाई बीजेपी का नेता है। ये हाल जब पढे लिखे प्रतिष्ठित व्यक्ति का हो सकता है तो बेचारे गरीब और अनपढ़ लोगों का क्या होगा। बाद मैं पुलिस के एक आला अधिकारी से जांच कराई गई तो उसमें भी पुलिस कर्मियों की लापरवाही पाई गई। क्या होगा निलंबन, आदत हो गई है पुलिस के कर्मचारियों और अधिकारियों को निलंबन की। अब तो कोई कठोर सज़ा के बारे में सोचना होगा।

Friday, March 28, 2008

आसान नहीं है हिन्दी मैं लिखना

पिछले एक माह मैं प्रतिदिन पांच पांच घंटे की कड़ी म्हणत के बाद भी अभी कह नहीं सकता की कब तक ब्लॉग लिखने मैं कामयाब हो पाऊँगा हालांकि मेरी ताईपींग की गति बहुत अच्छी है उसके बाद भी और कई वरिस्थ ब्लागरों को पड़ने के बाद भी मैं अपने को इस लायक नही बना सका की तुरंत टाइप कर सकूं सोचा था पहली बार कोई धमाका करूंगा कुछ ऐसा लिख्हुंगा की पाठक बार बार पड़ने को बेताव हो जायेंगे लेकिन ऐसा नहीं सका कोशश जारी है कहते हैं ना कि हिम्मत ऐ मर्दा मदद ऐ खुदा