Thursday, May 01, 2008

सीधे सच्चे राजनीतिक दलों से न पूछो, पैसा कहां से आया

केन्द्रीय सूचना आयोग ने अच्छा नहीं किया पहले से ही परेशान राजनीतिक पार्टियों की परेशानी और बढ़ा दी। अब बताईये लोग इनके फण्ड का भी हिसाब किताब मांगने लगे हैं। हमारे राजनीतिज्ञ गर्मी सर्दी बरसात की चिंता किये बिना मेहनत करते हैं भाई, थोड़ी बहुत कमाई हो भी जाती है तो वो भी बता दें, क्यों बता दें। हिसाब किताब लेने वालों को अगर इनकी कमाई से जलन होती है तो वो बना लें पार्टी, हिन्दुस्तान में पार्टी बनाने पर कोई रोक लगी है क्या।
अब देखो इत्ती बड़ी बड़ी पार्टियां और बित्ते भर के नागरिक इनके पैसे का हिसाब किताब लेंगे। गलत बात है भाई। कांग्रेस और भाजपा ने साफ साफ अपनी आपत्ति इस पर दर्ज करा दी है। क्यों दे हिसाब कोई चोर हैं क्या! हिसाब किताब देने का काम आम लोगों का है, ये पार्टियां आम हैं क्या। सूचना-वूचना का अधिकार तो इन्होंने नागरिकों की तसल्ली के लिये वैसे ही दे दिया था। इसी लिये तो हिन्दुस्तान में नागरिकों को अधिकार दिये ही नहीं जाते, जरा सी ढील दे दो तो सिर पर चढ़ बैठते हैं।
अब इस भोली-भाली जनता को ये बताओ कि पैसा कहां-कहां से आ रहा है और फिर जग हंसाई करवाओ कि सारी पार्टियों के संबंध पूंजीपतियों से कितने मधुर हैं।
और फिर सारा पैसा ये पार्टियां क्या तिजोरियों में रखती हैं, अपने ऐशो आराम में खर्च करती हैं अरे भाई जैसा आता है वैसे ही चला भी जाता है। वोटरों को भ्रमित करने के लिये कित्ते बड़े बड़े विज्ञापन अखबारों में टेलीविजन में देने पड़ते हैं, हवाई जहाज हैलिकॉप्टर से दौरे करने पड़ते हैं, बड़े बड़े संवाददाता सम्मेलन आयोजित करने पड़ते हैं, बड़ी बड़ी सभायें आयोजित करनी पड़ती हैं और जरूरत पड़ती है तो इन्हीं वोटरों को दारू मुर्गा और नकद भी। क्या पैसा नहीं लगता इस सब में।
चलो दे भी दिया हिसाब तो जो सामने निकल के आयेगा वो िझल जायेगा आप लोगों से। मान लो कोई वरूण पगली की भारतीय सेना पार्टी से फण्ड का हिसाब किताब मांगता है तो क्या सूचना मिलेगी।
पार्टी के सभी जिम्मेदार पदाधिकारी जेल में बैठेले हैं, सुना है कोई मकोका-अकोका लगा के बंद कियेला है सरकार ने, पण अपुन जो जानकारी तुम मांगेला है उसे देने की कोशिश करेंगा।
टोटल आमद की अपुन को कोई खबर नहीं पण ये मालूम है कि ज्यास्ती पैसा बिल्डरों से हफता वसूली करके कमायेला है बाप, फिर साइट में खोली बंगले खाली कराने का है, मर्डर वर्डर सुपारी लेने देने का अलग रेट है और फिर भीड़ू लोग खुद भी हिफाजत के वास्ते रकम जमा करा जाते हैं।
अभी इतने से ही काम चलाओ बाद में जब जेल से अपना बड़ा बाप आ जायेंगा तो पूरी जानकारी (अगर वो चाहेगा तो) ठप्पा लगवा कर भेज दी जायेगी। नहीं तो वो खुद किसी को तुम्हेरे घर भेज कर हिसाब किताब समझा देंगा।

इसलिये भाईयो! बड़े लोगों की बड़ी बातें, कहां से आता है कहां जाता है हमें क्या। बेमतलब में अगर ये राजनीतिक पार्टियां हिसाब किताब देने में अपना समय बरबाद करने लगीं तो देश का विकास रूक जायेगा और अगर इनको क्रोध आ गया तो हो सकता है जो सूचना का अधिकार इन्होंने हमें दे रखा है वो भी छिन जाये।

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

शमशाद भाई मे भी मानता हू इन से हिसाब नही मागना चाहिये बल्कि इन्हे पकड कर उलट लट्का देना चहिये, जो कुछ भी इन की जेब से निकले उस का भी हिसाब मागॊ, इन की ओकात साईकिल लेने की होती नही ओर ...
बहुत अच्छा लगा आप का लेख एक सच खोल कर रखा हे आप ने बहुत बहुत धन्यावाद