Saturday, April 26, 2008

अश्लीलता को परिभाषित कौन करेगा

चीयर लीडर्स के मामले में एक बार विरोध के स्वर बुलंद होने की देर थी कि चारों तरफ हर किसी को अश्लीलता ही दिखाई देने लगी। महाराष्ट्र के बाद अब कोलकाता में भी आईपीएल के मैच में चीयर लीडर्स नहीं दिखाई देंगी, क्योंकि पश्चिम बंगाल के खेलमंत्री सुभाष चक्रवर्ती को भी चीयर लीडर्स के डांस में अश्लीलता दिखाई देने लगी है वहीं संसद में भाजपा की सुमित्रा महाजन ने भी बढ़ती अश्लीलता पर आपत्ति जताई है। अच्छी बात है हमें मिलकर बढ़ती अश्लीलता का विरोध करना ही चाहिये लेकिन बकौल महाराष्ट्र के गृहमंत्री अश्लीलता की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है फिर भी उन्होंने मैचों के दौरान होने वाले चीयर लीडर्स के डांस में अश्लीलता की जांच कराने की बात की है। कैसे होगी अश्लीलता की जांच, वो कौन सा पैमाना है जो यह बतायेगा कि कितने कपड़े कम पहनने पर अश्लीलता प्रारम्भ हो जाती है या डांसरों ने ऐसे कौन से लटके झटके इस्तेमाल किये जो अश्लील हो गये। सवाल ये है कि जांच के बिन्दू कैसे तय किये जायेंगे जब कि अश्लीलता की परिभाषा निश्चित ही नहीं है। अब सुमित्रा महाजन का कहना है कि फिल्मों और टेलीविजन पर भी अश्लीलता बढ़ती जा रही है। ये भी सही है परंतु यहां भी परेशानी वही है कि कोई दृश्य कब अश्लीलता की श्रेणी में आ जाता है इसका फैसला कैसे हो। चीयर लीडर्स डांस के दौरान जो कपड़े पहनती हैं उससे कहीं अधिक कम कपड़े हिन्दी फिल्मों की एक्ट्रेस पहनती हैं। राजनीतिज्ञों का कहना है कि मैच देखते समय बच्चे भी होते हैं और उन पर बुरा प्रभाव पढ़ता है जबकि फिल्मों के आवश्यक अंग बन चुके आइटम सॉंग में तो चीयर लीडर्स से कहीं कम कपड़े होते हैं साथ ही उनके हाव-भाव भी अश्लील होते हैं और गानों के बोल तो सभी जानते हैं आजकल कैसे इस्तेमाल किये जा रहे हैं। मैच के दौरान तो फिर भी आधा अधूरा ध्यान ही चीयर लीडर्स की तरफ जाता है परंतु फिल्में तो पूरे ध्यान के साथ देखी जाती हैं और सबसे अधिक बच्चे ही देखते हैं। फिर उन पर हो हल्ला क्यों नहीं। प्रतिबंध की बात फिल्मों के लिये क्यों नहीं की जाती। आश्चर्य जनक बात ये है कि चीयर लीडर्स के समाचार न्यूज चैनलों पर प्रमुखता से दिखाये जा रहे हैं उनके संवाददाताओं द्वारा भी यही बात कही जा रही है कि मैच के दौरान बच्चे भी होते हैं और उन बच्चों को ऐसा डांस नहीं देखना चाहिये जबकि उन समाचारों में समाचार कम और चीयर लीडर्स का डांस ही अधिक दिखाया जा रहा है।इस तरह के हो-हल्ले से तो अश्लीलता खत्म होने वाली नहीं है वो भी तब जबकि अश्लीलता सिर्फ एक ही प्रमुख राजनीतिक दल के राजनीतिज्ञों को दिखाई दे रही है जबकि दूसरे दल के अधिकांश राजनीतिज्ञ कह रहे हैं कि चीयर लीडर्स के डांस में कोई अश्लीलता नहीं है। ये विषय मिल बैठ कर सुलझाने वाले हैं और इसके लिये सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के आला दिमाग नेताओं को साफ सुथरी रणनीति बनाकर ईमानदारी से कदम उठाने होंगे और ऐसा संभव नहीं है।